शुक्रवार, 18 सितंबर 2020
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बुधवार, 9 सितंबर 2020
अरसे से बंद पड़े घर में........एक कविता
अरसे से बंद पड़े घर मे.....
तू ना ही सही, लेकिन यहाँ पंछियों की उड़ान देखी है।
कभी उठता था, धुंआ यहाँ रसोई से।
अब तो दरवाजे पर लगे, ताले में भी जंग लगा है।
कभी सुनाई देती थी, यहाँ से बच्चो की आवाजे।
आजकल तो यहाँ हवाएं भी, शोर नही करती।
कभी बसती थी जिंदगी यहाँ, अब अकेला घर बचा है।
जिसे टूटते हुए भी, हर रोज़ और हरपल देखा है।
जिसे टूटते हुए भी, हर रोज़ और हरपल देखा है।
कुछ दोस्त जो बैठा करते थे, कभी घर की चौखट पर। आज भी देखा करते है वो इस तरफ, किसी आस से।
पूछता होगा घर भी अपने से, की क्या गलती रही मेरी।
जो यहाँ से वह लोग चले गए, जिनसे कभी मैं घर था।
पता नही उसे कभी इसका, मिल भी पाएगा जवाब।
पता नही उसे कभी इसका, मिल भी पाएगा जवाब।
या उससे पहले ही, वह पूरा ढह जाएगा।
अरसे से बंद पड़े घर मे, वापिस चहचाहट देखी है।
तू ना ही सही, लेकिन यहाँ पंछियों की उड़ान देखी है।
अरसे से बंद पड़े घर मे, वापिस चहचाहट देखी है।
तू ना ही सही, लेकिन यहाँ पंछियों की उड़ान देखी है।
सचिन त्यागी
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