बुधवार, 9 सितंबर 2020

अरसे से बंद पड़े घर में........एक कविता

अरसे से बंद पड़े घर मे.....

अरसे से बंद पड़े घर मे, वापिस चहचाहट देखी है।
तू ना ही सही, लेकिन यहाँ पंछियों की उड़ान देखी है।
कभी उठता था, धुंआ यहाँ रसोई से।
अब तो दरवाजे पर लगे, ताले में भी जंग लगा है।
कभी सुनाई देती थी, यहाँ से बच्चो की आवाजे।
आजकल तो यहाँ हवाएं भी, 
शोर नही करती।
कभी बसती थी जिंदगी यहाँ, अब अकेला घर बचा है।
जिसे टूटते हुए भी, हर रोज़ और हरपल देखा है।
कुछ दोस्त जो बैठा करते थे, कभी घर की चौखट पर।      आज भी देखा करते है वो इस तरफ, किसी आस से।
पूछता होगा घर भी अपने से, की क्या गलती रही मेरी। 
जो यहाँ से वह लोग चले गए, जिनसे कभी मैं घर था।
पता नही उसे कभी इसका, मिल भी पाएगा जवाब।
या उससे पहले ही, वह पूरा ढह जाएगा।
अरसे से बंद पड़े घर मे, वापिस चहचाहट देखी है।
तू ना ही सही, लेकिन यहाँ पंछियों की उड़ान देखी है।


सचिन त्यागी 

12 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ खामियां हैं लेकिन पहला प्रयास हैं😊

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    1. जी समझ सकता हूँ कि बहुत खामियां रही होगी इस मे। क्योंकि वह शब्दो का ज्ञान मुझ में है ही नही शायद अभी जो होना चाहिए। धन्यवाद दर्शन जी आपका हौसला अफजाई के लिए।

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  2. बहुत बढ़िया !!
    बहुत ही अच्छी कविता !!
    💐💐💐💐👍👍👍

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  3. बहुत ही बढ़िया लिखा हुआ है लगता नही पहली बार लिखा है
    कमियां तो व्यक्ति के जीवन का हिस्सा रहा हैं कमी तो सभी में होती हैं
    बस थोड़ी सी तुकबंदी की कमी लगी
    वैसे जो भी लिखा सही हैं सुनहरी यादों को पन्ने पर उतारने की कोशिश की हैं
    🙏🙏
    सचिन गोयल
    मेरठ

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    1. धन्यवाद भाई🙏
      कभी कभी लिख लेता हूँ। तुकबन्दी तो इसमें है ही नही, यह तो उस घर की एक व्यथा मात्र थी बस।

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  4. बहुत अच्छे सचिन भाई .... कविता खाली घर के बारे में एक अलग अहसास लाती है

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  5. बहुत ही सरहानीय प्रयास ......

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