गुरुवार, 8 सितंबर 2016

दर्द

(यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक होते हुए भी, हमसे और हमारे समाज से जुड़ी हुई है। अभी कुछ दिन पहले मैं अपने काम से घर की तरफ आ रहा था, मैने देखा की रोड के साईड बहुत भीड लगी है, रूककर देखा तो एक बाईक सवार व उसकी फैमली को हल्की चोट लगी है, शायद किसी ने उनको टक्कर मारी थी, काफी भीड लगी थी मैने उनसे उनका हालचाल पुछा, जब पाया की सब ठीक है। तब मै वहा से चला आया। लेकिन पूरे रास्ते उस एक्सीडेंट की बातें मन मे घूमती रही। आज यह कहानी उसी रोड एक्सीडेंट की वजह से मन में उभरे उन्ही जज्बातों पर आधारित है। जो मुझे लौटते हुए आये थे।)

दीपू आज उदास लग रहा था, आज उसका रिजल्ट भी आया था। रिजल्ट में वह हर साल की तरह फस्ट ही आया था, फिर भी वह आज उदास था। क्योकी आज स्कूल में काफी चहल पहल थी, सब बच्चो के मम्मी पापा आए हुए थे, वह सब बच्चो व उनके मम्मी पापा को बडे गौर से देख रहा था, दीपू सात साल का एक छोटा व समझदार बच्चा है, वह कक्षा दूसरी मे पढता है,  वह अपने घर के पास के सरकारी स्कूल में पढता है। घर में उसकी मम्मी व एक 10 साल की बडी बहन गुड्डी है। दीपू के उदासी का कारण यह था की वह आज अपने पापा को बहुत याद कर रहा था।
दीपू के पापा अब इस दुनियां में नही है, जब दीपू चार साल का था तभी उसके पापा उसको छोड कर भगवान के पास चले गए, इसलिए वह कभी कभी भगवान से पुछता है की उन्होने उसके पापा को अपने पास क्यो बुला लिया। उसके पिता की मौत रोड एक्सीडेंट में हुई। जब वह दीपू को बाजार से स्कूल के जूते दिला कर ला रहे थे, तब रेड लाईट पर उनके स्कूटर को गलत दिशा से आ रही एक गाडी ने टक्कर मार दी,  टक्कर लगते ही दीपू उछल कर डिवाईडर के पास वाली झाडियो मे जा गिरा, उसकी मम्मी के हाथ पैर मे चोट थी, लेकिन वह बेहोश हो चुकी थी, जबकी उसके पापा को काफी चोट लगी थी, हेल्मेट टुट कर चकनाचुर हो गया था, उन्होने पहले दीपू को झाडियो से निकाला, दीपू लगातार रो रहा था, उन्होने दीपू को गले लगाकर चुप करना चाहा लेकिन कुछ देर बाद उसके पापा लडखडाकर वही सड़क पर गिर पडे। अब दीपू अकेला ही रोए जा रहा था।
बहुत सी गाडिया व लोग उधर से गुजर रहे थे पर किसी ने अस्पताल तक उन्हे पहुँचाने कोशिश नही की, आखिरकार एक घंटे के बाद पुलिस व एक एम्बुलैंस आई और उन्हे लेकर एक अस्पताल में पहुचीं।
अस्पताल तक पहुचने मे मुस्किल से दस मिनिट ही लगी क्योकी दुर्घटनास्थल से अस्पताल केवल चार या पांच किमी की दूरी पर ही था। डॉक्टरो ने तुरंत सभी का उपचार चालू किया, लेकिन दीपू के पापा को नही बचा सके, डॉक्टर के अनुसार अत्याधिक रक्त बहने से दीपू के पापा की मौत हुई थी, अगर उन्हे कुछ देर पहले अस्पताल लाया जाता तब वो बच सकते थे।
दीपू के पापा इस दुनिया मे नही रहे। आज उनका परिवार बहुत सी कठनाईयों मे जीवन व्यतीत कर रहा है उनका यह दर्द हम समझ नही सकते है।

समाप्त...

अपील:-
इसमे गलती किस की थी, पहले उस गाडी वाले की जो गलत दिशा से आया और उनको टक्कर मार कर भाग गया या वह लोग जो उनकी मदद कर सकते थे लेकिन उन्हे देखकर वहां से चलते बने। अब कुछ भी कह ले, किसी को भी कसूरवार ठहरा ले, लेकिन दीपू तो अपने पापा को खो चुका था। आज भी सड़क दुर्घटना में बहुत से लोग अपना जीवन खो देते है, पता नही कितने ही दीपू अपने पापा के स्नेह व प्यार से मोहताज हो जाते है। क्योकी हम लोग किसी घायल की मदद नही करते है, कुछ पुलिस के डर से तो कुछ अपना समय खराब होने से।
हम लोग आज से यह प्रण कर ले की हम हर घायल की मदद करेगे। हर जख्मी देखते ही उसकी मदद करेगे। चाहे आसपास लोगो को से अपील करके या फिर पुलिस को बता कर। तो क्या पता हमारे इस प्रयास से एक दीपू को उसके पापा का प्यार मिलता रहे।

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया त्यागी जी ।

    अब गलती किसकी कहे, कायदे से गलती तो गाड़ी टक्कर मारने वाले की भी है और तमाशा देखने वाले की भी । पर कोई कानून के गन्दे सिस्टम में नही फसना चाहता । पहले सिस्टम को सुधारना होगा ।

    आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी ।

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    1. धन्यवाद रितेश भाई। लेकिन अब कानून में बहुत बदलाव लाया जा चुका है, पहले ऐसे केस में डॉ एकदम उपचार नही करते थे अब रोड एक्सीडेंट के केस मे तुरंत उपचार की सुविधा है, अब सूचना देने वाले की पहचान भी गुप्त रखी जाती है। पुलिस परेशान भी नही करती है।

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  2. बहुत सुंदर और सही सन्देश देने वाली कहानी👍
    पहले कानूनी पचड़ों के चक्कर से बचने के लिए लोग किसी एक्सीडेंट पीड़ित की मदद को ना रुकते थे पर अब माननीय न्यायालय के निर्देश के बाद परिस्थितियां बदली है....पर ये भी सत्य है के अभी भी जागरूकता की कमी है

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    1. धन्यवाद डॉ साहब।
      अभी भी जागरूकता की बहुत कमी है सही कहा आपने।

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  3. बहुत सही विषय उठाया है सचिन भाई अपनी कहानी में। आज सड़कों पर बढ़ते हुए ट्रैफिक दबाव व रफ्तार की चाह की वजह से कितने ही लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते है। अभी पिछले ही दिनों जाट देवता ने भी अपनी वाल पर इसी प्रकार की एक दुर्घटना का जिक्र किया था।
    आपका प्रयास सराहनीय है।

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    1. धन्यवाद अवतार जी,
      बस यही विनती है सबसे की सब मुंह का फेरे, बस मदद कर दे।

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  4. भारत में रोजाना सड़क दुर्घटना में लोग प्राथमिक चिकित्सा के आभाव में और मूक दर्शक लोगो के कारण सड़क पर ही दम तोड़ देते ।कुछ अस्पताल में ,
    और जो बच भी जाते है , उनका जीवन एक बोझ सा रह जाता , शारीरिक विकलांगीता के कारण ।परिवार का मुखिया या जिस पर परिवार आश्रित होता है , वो तो एक बार मरता है ।उसका परिवार समाज की दुर्दशा के कारण रोजाना मरते है ।
    न्याय बिभाग की तो बात करना तो बेबकूफी होगी ।

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  5. बहुत बढ़िया और सामयिक कहानी
    बधाई

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  6. बहुत मर्मस्पर्शी है,मैं ज्यादा शब्द नहीं कह सकता।

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  7. बेहतरीन कहानी । लाजवाब मुद्दा
    मगर अक्सर लोग इस तरह की कहानियों की तारीफ करते है, मगर जब हकीकत में इस तरह की परिस्थितियां आती है , भाग खड़े होते या तमाशबीन बन जाते है ।

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    1. सही कहा चंदन जी आपने, हम अपनी समाज के प्रति जो जिम्मेदारी है उसको भूल रहे है।

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  8. ऐसा नहीं है सचिन भाई कि प्रयास नहीं किये गये लेकिन कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हो पाया । कारण कुछ भी रहा हो , रोड पर भागता भीड़ या दोलत का नशा, शराब का नशा , पॉवर और इंसानियत का मर जाना । लेकिन सुधरा कुछ नहीं

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  9. ऐसा नहीं है सचिन भाई कि प्रयास नहीं किये गये लेकिन कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हो पाया । कारण कुछ भी रहा हो , रोड पर भागता भीड़ या दोलत का नशा, शराब का नशा , पॉवर और इंसानियत का मर जाना । लेकिन सुधरा कुछ नहीं

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  10. मर्मस्पर्शी और प्रेरक 👍

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  11. मर्मस्पर्शी कहानी, पढ़कर रोम रोम खड़ा हो गया और बदन में सिरहन होने लगी। गलती चाहे किसकी भी हो पर एक बच्चा तो अनाथ हो गया।

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    1. धन्यवाद अभयानंद जी। जी हां एक बच्चा अनाथ हो गया...

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  12. मैं दीपू से मांफी मांगना चाहता हूँ क्योंकि कई बार मैं भी उस नपुंसक भीड़ का हिस्सा बना हूँ, हर बार खुद को कोसता हूँ लेकिन फिर से वहीँ करता हूँ । आज फिर खुद को तैयार किया है किसी गिरते की मदद के लिए, आशा करता हूँ अब से सिर्फ खुद को ही नहीं बल्कि ओरों को भी संभालूँगा ।

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    1. धन्यवाद रोहित भाई ! अगर हम दीपू का दर्द को समझ सकते है और दूसरो की मदद कर सके तो इससे बडी कोई और बात नही हो सकती।

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